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सफर - मौत से मौत तक….(ep-25)

मन्वी और राजू दोनो एडवोकेट समीर के घर के बाहर पहुंचे। गेट के पास मन्वी ने समीर का नाम देखा और उस बड़े से घर को देखते हुए बोली-

"यही है पापा, नंदू अंकल का घर यही है"

"गजब….क्या घर बनाया है……मजा ही आ गया देखकर" राजू ने कहा।

मन्वी की दरवाजे की घंटी बजायी , जिसे सुनते ही कब से पलके बिछाए नंदू दौड़ा आया जैसे बस उन्ही का इंतजार था उसे,

नंदू ने गेट खोला…

"आइए आइए….आखिर भटकते भटकते आ ही गए आप लोग, देखो एक बजा दिए…." नंदू बोला।

"शुक्र है पहुंच गए, मन्वी साथ मे थी उसने मोबाइल में देखकर ढूंढ निकाला..मैं अकेले होता तो कल तक भी नही पहुंचता" राजु ने कहा।

मन्वी ने नंदू अंकल के पैर छुए

"जुग जुग जिये बेटा" नंदु ने आशीर्वाद देते हुए कहा।

तीनो अंदर की तरफ आ गए। और एक बड़े से हॉल में आकर बैठ गए….

"पूरे मंडावली में ऐसा घर नही देखा मैंने जैसा ये आपका घर है" राजू ने कहा।

"मैंने कौन सा देखा था, हां कुछ कोठियां इससे बड़ी बड़ी है वहाँ लेकिन उनका लेवल ही अलग है,वो अलग स्तर के लोग है, पहुंच बाहर के" नंदू बोला।

"ये कौन सा हमारे लेवल का है, वो आपका बेटा अच्छा है, मेहनती है, वरना नौकरी लगे अभी साल भी नही हुआ, और मकान देखो….कौन यकीन करेगा कि रिक्शेवाले के बेटे ने कर दिखाया है।" राजू बोला।

"ये बात तो है, लड़का है बहुत मेहनती….आज सण्डे को भी आफिस में काम आ गया तो चले गया, आज के काम को कल मैं कभी नही टालता वो, हाँ कल के काम को आज करने की कोशिश जरूर करता है।" नंदू बोला।

नंदू की बात सुनकर नंदू अंकल मुस्करा दिए। और सोचने लगे- "आज के काम को कल पर टालने के मतलब है एक वाली फिल्म मिस कर देना, और कल इशानी को टाइम हो भी या नही, रिस्क जरूरी लेना है, कौन सा उसे कोई रोक सकता है जाने से…"

राजू भी मुस्कराते हुए बोला- "कब तक आएगा फिर समीर…."

"जब तक हम लंच करेंगे, तब तक आ ही जायेगा। …….मैं एक बार पूछ लेता हूँ फोन करके….जहां तक मेरा ख्याल है वो लंच करके ही आएगा" नंदू ने कहा और अपने कमरे में मोबाइल लेने चला गया।

उधर समीर और इशानी सिनेमा हॉल के अंदर कुर्सी में बैठे हुए थे, मूवी इंटरमिशन पर थी….और पांच मिनट का ब्रेक मिला था सबको…. इस बीच हॉल से बाहर गोलगप्पे के दुकान की तरफ सब लोग भाग रहे थे। कुछ वॉशरूम की तरफ तो कुछ पॉपकॉर्न के ठेले पर..
लेकिन समीर और इशानी को होश भी नही था कि अभी ब्रेक चल रहा है। हाथों में हाथ रखे, एक दूसरे के सिर पर सिर टिकाकर दोनो गुफ्तगू कर रहे थे। कि अचानक फोन का रिंगटोन बजा
🎶🎶मैं रहूँ तेरे सामने……बना ले मुझे आईना……की मेरे हर लफ्ज़ काआआ…. तू हीईई एक मायनाआ……
(ये समीर का और मेरा दोनो का रिंगटोन है😊😊और किसी का भी होगा तो बताना☺️)

दोनो अचानक उठे, एक दूसरे से थोड़ा दूर होते हुए गर्दन घुमाई तो पूरे हॉल में कुछ कुछ लोग बैठे थे, सामने देखा तो इंटरमिशन का ब्रेक था।
"आपका फोन बज रहा है" इशानी ने समीर से कहा।

समीर ने देखा तो फोन पापा का था….
"जरूर मेहमानों को स्टेशन से लाने के लिए फोन किया होगा" समीर ने इशानी की तरफ फोन दिखाते हुए कहा।

"अच्छा ससुरजी फोन कर रहे, बोल दो ऑटो रिक्शा कर लो, अब आपकी गाड़ी है, कोई टैक्सी थोड़ी है जो स्टेशन लाने छोड़ने का काम करोगे"  इशानी बोली।

समीर ने फोन उठाया- " हाँ पापाजी बोलो…."

"बेटा खाना खाने तक आ जायेगा या खाकर ही आएगा" नंदू ने सवाल किया।

"आप खा लो….मैं खा पीकर  आऊंगा…." कहकर समीर ने बिना वक्त गवाए फोन काट दिया।

"कब तक आएगा….कितना वक्त………."नंदू का अगला सवाल पूछने तक फोन काट चुका था।

अब नंदू फोन टेबल पर रखते हुए हंसते हुए बोला- "दो मिनट बात करने की भी फुर्सत नही मिलती उसे….बोल रहा है आप लोग खा लो, वो खाना खाकर आएगा"

"ठीक है मैं हाथ धो लाता हूँ, मन्वी तुमने भी हाथ मुंह धोने है तो अंकल से बाथरूम पूछ लो कहाँ है.." राजू ने कहा।

"अरे ज्यादा दूर नही, सब अंदर ही है, वो उस तरफ सीढ़ियों के पास ही है। जल्दी जा आओ….हाथ धोकर…. मैं खाना परोसता हूँ.. " कहकर नंदू किचन की तरफ चल पड़ा।


****


इधर एक तरफ नंदू, राजू और मन्वी खाना खा चुके थे, तो उधर सिनेमाहॉल के कैंटीन मैं अभी अभी प्रवेश कर रहे समीर और इशानी डिसाइट नही कर पा रहे थे कि आज क्या खाएं….  दोनो ने मेन्यूकार्ड मंगाया और दस मिनट उसे घूरा, तब जाकर अपनी अपनी पसंद का खाना आर्डर किया। और इंतजार करने लगे खाना टेबल तक आने का।

इधर नंदू सारे बर्तन किचन में रखकर सोचने लगा कि इन बर्तनों के साथ क्या शलूक किया जाए, असमंजस में था। क्योकी सुबह सारे बर्तन पुष्पाकली धोकर जाती थी, शाम के भी उसी में होते थे। लेकिन दिन के दो चार बर्तन नंदू खुद धोया करता था, कभी कभी शाम को जब ज्यादा बर्तन हो जाते तो भी धो देता था। उसे ऐसा लगता था कि पुष्पाकली भी परेशान हो जाएगी, आखिर वो भी इंसान है।
लेकिन अभी बर्तन धोना उसे अजीब लग रहा था। क्योकि फोन पर राजू के सामने बहुत तारीफ के पुल बांधे हुए थे। 
अब उसे अगर राजू ने बर्तन धोते देख लिया तो कहीं बेइजती ना हो जाये। और उसी बेइज्जती के डर से नंदू ने बर्तनों को भीगाकर छोड़ दिया। और बाहर जाने लगा। तभी पानी पीने के लिए मन्वी किचन में आई।

"अंकल थोड़ा पानी चाहिए था?" मन्वी ने कहा।

नंदू  ने पानी का गिलास भरकर मन्वी को पकड़ाया। और कहा- "कैसा बना था खाना….???"

" खाना तो बहुत स्वादिष्ट था अंकल जी" कहते हुए मन्वी ने पानी का नल खोला और अपने गिलास को धोने लगी….

"अरे रख दे बेटा….सुबह कामवाली आएगी वो धोएगी…… तुम क्यो धोने लगी" नंदू बोला।

"अरे नही अंकल जी….अभी हम है तो किसी कामवाली के भरोसे काम क्यो छोड़ना….और सुबह तक जूठे बर्तन अंदर रहेंगे, अच्छा थोड़ी लगता है" कहकर मन्वी एक एक करके बाकी बर्तन भी धोने लगी।

"अरे तुम पाप लगवाओगी, मेहमान हो इस घर मे, और ये काम तुम्हारा नही हमारा है" कहते हुए नंदू ने उसके हाथ से बर्तन नीचे रख दिया।

"कुछ नही होता अंकल, इससे ज्यादा तो मैं रोज धोती हूँ,सुबह से शाम तक घर मे बर्तन ही धोना होता है कभी चाय के कभी खाने के, काम करने से कोई घट थोड़ी जाएगा, वैसे भी आपका घर मेरा घर जैसा है, और हम मेहमान है ये बात तो आप भूल ही जाओ" कहकर मन्वी दोबारा बर्तन धोने में जुट गयी।

"चलो ठीक है मैं भी तुम्हारी मदद कर देता हूँ" नंदू बोला।

"नही अंकल जी….आप बाहर पापा के साथ बैठो….मैं बस पांच मिनट में सारा निपटा देती हूँ।" मन्वी ने कहा।

नंदू बाहर चले गया। और राजू के साथ गप्पे मारने लगा। लेकिन नंदू अंकल अभी तक कीचन में था। मन्वी कोई दिखावा करने के लिए नही धो रही थी….दिल से काम कर रही थी, और धीमी धीमी आवाज में बंद होंठो से गुनगुना भी रही थी।

आआ अअम….
अहर….आदनी….ए….अम
उम इले त इराने में
आ आएगी वहार
उमने अएगा आसमा
अहता है इल
अस्ता उस्कील
आउम नही हाँ अंजिल

नंदू अंकल समझ रहा था उस गाने के बोल को भी जो स्पष्ट नही था,  उसमे समीर का इंतजार था, और थी एक खुशी। क्योकि इंसान अपने मूड के हिसाब से गुनगुनाता है।
थोड़ी देर में बर्तन सारे साफ करके किचन को चमका कर बर्तनों को उनकी जगह सेट करके बाहर आ गयी।

उधर समीर इशानी को उसके घर के पास  छोड़कर घर की तरफ आने लगा था। नंदू को समीर ने फोन कर दिया था कि वो घर आ रहा है, कुछ सामान लेकर आना है तो बता दो, मेहमानों के खातिरदारी में कोई कमी नही होनी चाहिए।

"नही बेटा! ऐसी कोई जरूरत नही है, आराम से आ जा घर" नंदू ने कहा।

बस समीर की कुछ ऐसी बाते थी कि आज भी नंदू अंकल भी सोचने लगता है कि गलती उसकी थी,उसके उम्र की या फिर मेरी…….

"क्या बोला….आ गया होगा आफिस से…." राजु ने नंदू के फोन काटने के बाद पूछा।

"हाँ निकल रहा है, पूछ रहा है कि, कोइ समान तो नही लाना है…." नंदू ने कहा।

"अच्छा……" राजुने बात खत्म कर दी थी कि नंदू से रहा नही गया समीर के तारीफ के बिना और खुद ही बोल पड़ा।

"सारा सामान खुद ही लाता है, मैं आज बोलूँगा की ये समान खत्म होने वाला है तो अगले दिन घर पर वो समान मिल जाएगा….मुझे घर मे सब समान मिल जाता है,मार्किट का मुंह नही देखा इतने दिन यहाँ" नंदू बोला।

"अरे वाह! आजकल के लड़के कहाँ सोचते है इतना……अच्छी आदत बना रखी है लड़के ने" राजू बोला।

"अब इतने साल अकेले था, सब खुद ही देखता था, आदत तो हो ही जानी थी।….वैसे आपकी बेटी भी बहुत प्यारी है, काम काज भी अच्छा कर लेती है, और बोल-चाल भी अच्छी है, ना ज्यादा बोलना, ना ज्यादा शरमाना….और थोड़ा जिद्दी भी है, मुझे अपने बेटे के लिए ऐसी ही दुल्हन चाहिए थी।" नंदू बोला।

मन्वी भी मुस्कराकर रह गयी।
हंसते हुए राजू बोला- "बस आपके लड़के को पसन्द आ जाये, बाकी हम तो इसे घर से विदा कर लाए है"

"हहह…..ये बिल्कुल ठीक कहा,मुझे भी उसी की टेंशन है….लेकिन वो मेरा बेटा है, मेरी बात नही टालेगा, बहु तो यही बनेगी….थोड़ा जिद्दी ये है तो थोड़ा मैं भी हूँ," नंदू ने कहा।

"और समीर जिद के मामले में तुम्हारा बाप है" नंदू अंकल ने गुस्से से खुद को ही कहा। इस समय नंदू अंकल को नंदू पर गुस्सा आ रहा था।
नंदू खुद तो सपने देख देख रहा था साथ मे  मन्वी और उसके पापा को भी सपने दिखा रहा था। उसके सपनो के साथ साथ उन दोनों का सपना भी टूटेगा।

"काश की पहले समीर से खुलकर बात करने के बाद इन लोगो से बात करने की सोची होती, खैर अब सोचने से क्या फायदा….जो हो रहा है उसे देखो" नंदू अंकल ने सोचा।

बाहर गाड़ी के हॉर्न की आवाज आई, समीर बाहर आ चुका था और गाड़ी पार्क कर रहा था। फिर गेट के खुलने की आवाज आई।

"लो….आ गया समीर…." नंदू ने कहा।

मन्वी के दिल की धड़कन तेज तेज धड़कने लगी, समीर का सामना कैसे करेगी, उसे पहला शब्द क्या बोलेगी….वो अगकर क्या बोलेगा….बहुत सालों बाद हो रही मुलाकात के लिए मन्वी बहुत नर्वश थी। अपने हाथ के ऊपर हाथ रखकर खुद को हीम्मत दे रही थी।

थोड़े कदमो के आहट के बाद दरवाजा खुला……जिसने मन्वी की धड़कन और बढ़ा दी थी।

कहानी जारी है

अच्छा ये कौन सा गाना है,
किस किस को समझ आया
😊😊😊😊😊😊😊

आआ अअम….
अहर….आदनी….ए….अम
उम इले त इराने में
आ आएगी वहार
उमने अएगा आसमा
अहता है इल
अस्ता उस्कील
आउम नही हाँ अंजिल


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1 Comments

Swati chourasia

10-Oct-2021 08:43 PM

Very nice

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